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कारणात् ) कि जीव अनन्त है, कोई तो अनादि अनंत कर्म सहित है और कोई अनादि सांत कर्म सहित है इत्यर्थ ।।१०॥ सो यही कथन जेनियों का है क्योंकि जो निष्पक्ष दृष्टि से देखो तो आत्मा (जीवों) का वही स्वरूप सत्य है कि जो हम ऊपर परआत्माधिकार में लिख आये हैं जैसे कि जीव अ
र्थात् चिदानन्द संसार में अनंतअन्यान्य है 'हां अलबत्ता सर्व जीवों का स्वरूप अर्थात् चेतना लक्षण एक सम ही है ॥
अथ ५ आत्म शिक्षांग । भो चैतन्य ! तत्व स्वरूप को विवेक द्वारा बोध कर और पूर्वक ? आत्म २ पगम. १ परमआत्म नत्व को बूझकर एसे विवार. कि मेरे बड़े भाग्य है जो मुझे सत्संग
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