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परंपरा से कर्मों की वासनाओं द्वारा आगे को नये कर्म पैदा करने वाले काम क्रोध आदि को आचरता हुआ भवसागर के विपे भ्रमता चला आता हूं आर अव मनुष्य जन्म इन्द्रिय संपूर्ण जाति कुल विवेक धन संयुक्त आर देश काल शुद्ध स्थानागत किनारे आन लगा हूं तो अव परंपरा का की वासना के प्रभाव से कनक कामिनी के वश वर्ती हो कर हिंसा झूट चोरी धरजा मरजा मानों जगत का धन लूट लूं इत्यादि अनाचार आचरण करके कभी फिर न लोभ मोह के प्रवाह में वह जाऊं सो अव धर्म काय में सावधान होऊ ऐसे विचार करके धर्म अर्थात् शुद्ध निया रूप प्रवृत्ति सुक्त आचरण विधि के विषय में सावधान हो इम लिये धर्म की,
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