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वास्ते है और सुकृत दुष्कृत का कर्ता भोक्ता कौन है ? ॥४॥ और कितनेक पुरुष ऐसे कहते हैं, कि सत्यात्म चिदानन्द एक अंग रूप है और सर्व शरीर अर्थात् सर्व चराचर जीव तिसी के उपांग रूप हैं । उत्तरपक्षी, अरेभाई एक अंग में अनेक सुख दुःखादि की अन्यान्य अवस्था कैसे सम्भव है ? जैसे कि एक हाथ और एक पैर के तो तप चढ़ा
और दूसरे को नहीं, अपितु ऐसे नहीं, सर्व ही अंग को दुःख सुख सम ही व्यापता है सो सर्व जीवों को सुख दुःख एकसम होय तो तुम्हारा पूर्वक कथन सहीह है न तो नहीं ॥५॥ और कितनेक मतावलम्बी शशि घट बिम्वरूप दृष्टांत मुख्य रखते हैं कि जैसे आकाश में एक चन्द्र है और जल के घड़े जि