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वतार योगाभ्यासी होकर परमात्म पद को व्याप हैं (सो) उस पद की उन पेट भराऊंओं को खबर ही है नहीं ॥२॥ और कितनेक पुरुष ऐसे कहते हैं कि सिद्ध होके फिर वही मुड़२ के अवतार धारण करते हैं सोई उन को पूर्वक सिद्धों की तो खबर है नहीं वे मतावलम्बी तो वैकुंठ अर्थात् स्वर्गनिवासी देवताओं की अपेक्षा से कहते हैं क्योंकि स्वर्ग निवासी पलोपमसागरोपम की आयु भोग के अर्थात बहुत काल पीछे मनुष्य लोक अर्थात मृत्युलोक में उत्पन्न होते हैं इत्यथीसोई| हे भाई ! हम तुमको हितार्थ न्याय वचन से समझाते हैं कि सिद्ध मुड़के अवतार नहीं धारते हैं, यदि मुड़कर भी जन्म मरण रहा तो सिद्ध अर्थात् मुक्तभाव क्या हुआ? क्यों