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सुखी करलूं और तेरा नौकर कहना और दरिद्रता का दुःख दूर करूं इत्यर्थम् । सोई इस दृष्टांत वमृजिव तो तप जप और सत्य शील दानादि का यही फल है कि कर्म कलंक से निवृत्त होजाय और जन्म मरण की व्याधि से निवृत्त होजाय अर्थात् परमेश्वर रूप परमात्म व्यापी होरहे इति ।। और फिर कित|| नेक मतपक्षी देवों को (इन्द्र) को परमेश्वर मानते हैं जैसे धर्मराजवत् और कितनेक रा जाओं को (वासुदेवों) को परमेश्वर मानते हैं जेसे राजा रामचन्द्र अथवा कृष्ण वासुदेव जी को । सोई उन पुरुषों को दीर्घ दृष्टि अर्थात् परमात्म स्वरूप की तो खबर है नहीं क्योंकि ये राजा आदि तो बली अर्थात् अवतार हुए हैं. परन्तु परमेश्वर नहीं हैं, और जब वे अ