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( १२८ ).
भाई ! जो मांगना है सो मांग, तो वह रंक बोला कि मैं तेरी टहल करनी चाहता हूं तो फिर वह साहूकार मुस्करा कर बोला कि अरे! अहमक टहल तो कर ही रहा है मेरे तुष्ट होने का तुझे क्या लाभ हुआ तो फिर वह रंक बोला कि मैं तेरे नजदीक यानि पड़ोस रहा चाहता हूं तो फिर साहूकार कहने लगा कि मेरे पड़ोस रहने से क्या तेरा मुख मीठा होजावेगा और क्या तुझे बल रूप धनादि सुख मिल जावेगा ? अरे मूर्ख ! तू मेरे तुष्ट होने पर यह मांग कि मैं भी साहूकार और सुखी हो जाऊं और दरिद्रता के दुःख से छूट जाऊं और मेरी प्रीति यानि कृपा होने का भी यही सार है कि तुझे अपना भाई यानि अपने सदृश साहूकार और
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