________________
( १२५ )
रूप हुआ चाहते हैं और कितनेक खुदा के नजदीक हुआ चाहते हैं सो हे भाई यही रीति सादि अनंत सिद्ध अर्थात् परमेश्वर होने की है ॥ अथ (2) स्व पर मत तर्क अंग
और फिर कितनेक कहते हैं कि हम परमेश्वर यानि खुदा तो होना नहीं चाहते हैं हम तो खिदमत यानि भक्ति में नजदीक हुआ चाहते हैं तो फिर उनको ऐसे पूछना चाहिये कि साहकार के नजदीक वेटने से तो साहूकारी का सुख प्राप्त न होगा, साहकार की सेवा करने का तो यही मकसद है कि साहूकार तुष्ट होकर साहकार ही कर देवे दृटांत जैसेकि कोई रंक जन साहकार की टहल बहुत काल तक करता रहा तो फिर एक दिन साहूकार तुष्ट होकर वोला कि हे
-
-