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प्राप्त होते भए और बोध को प्राप्त होके फिर पूर्वक आरम्भ से निवृत्त होके तप जप रूप शुद्ध प्रवृत्ति में प्रवर्त के पूर्व कर्मों का तो नाश कर देते भये और आगे को काम क्रोधादि प्रवृत्ति के अभाव से हिंसादि सर्वारम्भ प्रति त्याग के प्रभाव से नया कर्म उत्पन्न होता नहीं तस्मात् कारणात् मोक्ष अर्थात् सिद्ध हो जाते हैं सोई ऐसे सादि अनन्त सिद्ध होते भए जैसेकि अपने २ मता वलम्बी हर एक नर नारी तप जप और पूजन धूपन सन्ध्या गायत्री अथवा निमाज आदि अनेक उपकर्म करते हैं सो कई तो हरि आदिक की सेवा भक्ति मेंहीलीन हुआ चाहते हैं कि हमको भक्ति ही में रम रहना चाहिये और कितनेक आत्म रूप ज्योति