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रूप को बूझे तिस के विषय प्रथम तोआत्मा सत्यस्वरूप चितानन्द का भाव एकान्त वास्तव में स्थितकरे जैसे कि मैं चैतन्य अरूपी अखंडित अविनाशी एकांत कर्म का कर्ता
और भोक्ता हूं और कोई दूसरे ईश्वरादि के करे कर्म का में नहीं भोक्ता हूं यानी ईश्वर का दिया सुख दुःख नहीं भोक्ता हूं और किसी सजनादि के करे कर्म का मैं नहीं भोक्ता यानी पुत्रादिक की जलांजली दी हुई नहीं भोक्ता हूं, में स्वआत्म सुख दुःख रूप कर्म का कर्ता और उसी कृत कर्म का फल कर्मों के निमित्तों से भोक्ता हूं इति ॥ | (२) दुसरे परआत्मा सो अनन्त संसारी जीव चराचर रूप सूक्ष्म स्थूल सर्व अन्य २. अपने२ सुख दुःख रूप कर्म के कर्ता और