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विना निजगुण लाभ के बोले नहीं | और ३ काय गुप्ति सो काय की चपलता और ममता को त्यागे || सो ये ५ सुमति और ३ गुप्ति के धर्त्ता साधु जन साधकात्मा हों तिनकी | सेवा भक्ति करे अर्थात फ्रासूक एषणीक पूर्वक अन्नपानी देकर तथा वस्त्रपात्र देकर तथा अपने वर्त्तने से ज्यादा मकान हो तो मकान देकर तथा बेटा बेटी वैराग्य प्राप्ति हो तो शिष्य रूप भिक्षादे कर गुरु की भक्ति करे और मुख साता पूछे और रोगादि के कारण साधुको देखे तो हकीमसे पूछे के निर्दोष औषधि की दलाली करावै ॥ और देशान्तर गये साधु की भेट हो जाय तो अपने क्षेत्र में आने की विनति करे और नगर आते मुनिराज को सुन के भक्त विनय करे और क्षेत्र में रहते हुए साधु की पूर्वक सेवा