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करे सो यह तो द्रव्य निर्दोप, और भाव निर्दोष, सो अति क्रोधी न होय अति कामीन होय अति लालची न होय क्योंकि जिसके सगं में क्लेश और निन्दा होय यथा उत्तराध्ययने इत्यर्थः ॥ और४ चौथी आदानभण्ड मत नक्षेपणीया | सुमति सो भंड उपकरण वस्त्र पात्र मर्यादा सहित रक्खे और गृहस्थी के पास रक्खे नहीं अर्थात् गृहस्थी के घर रक्खे नहीं और दो वक्त प्रतिलेखना करे और ५पांचमी उच्चार पासवण | लेख जल सवेण परिटावणि सु० || सो देह के मैल एकांत पृथक् सूकी भूमिका में गेरे जहां कोई जीव जन्तु गड़े नहीं और फस के मरे नहीं इत्यर्थः । और ३ गुप्ति । १ मन गुप्ति सो मनके अशुद्ध संकल्पों को रोके || २ वचन गुप्ति सो वचन आलपाल बोले नहीं, अर्थात्