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(४) चौथी वाड़ ब्रह्मचर्य की शीलवान पुरुष स्त्री की आंखों से आंखें मिला के झां के नहीं क्योंकि विकार का कारण है यथा| सूर्य की तर्फ दृष्टि मिलाने से आंखों में | पानी आने का कारण है यदि परोपकार के || लिये उपदेश करना होवै तो जैसे सुसराल ( सोहरे ) घर जाती हुई पुत्री को पिता निर्विकार भाव नीची दृष्टि करके शिक्षा देता है तथा जवान पुत्र दिसावर को जाता हुआ माता को नमस्कार करने आवै तब माता निर्विकार भाव नीची दृष्टि करके शिक्षा देती । है ऐसे शिक्षा देवै ॥ । (५) पांचवी वाड़ ब्रह्मचर्य की शील| वान पुरुष जहां स्त्री पुरुष परस्पर काम आदि क्रीड़ा करते हों वहां रहे नहीं देखे नहीं सुने नहीं