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२६ वीं गाथा " कोहंचमाणंचतहेव मायं लोभं|| च उत्थं अज्झत्थ दोषा एयाणि वन्ता अरहा। महेसीनकुब्बई पावन कार वेई ॥१॥ अस्यार्थः सुगमः ॥
ऐसे अरिहन्त देवजी के गुण परम त्यागी अर्थात् विषय भोग सावध व्यापारादि सर्वारम्भ परित्यागी अथवा परमवैरागी राग द्वेष से निवृत्त वीतराग केवल ज्ञानी के० अर्थात् सम्पूर्ण लोकालोक, आदि मध्य, अन्तअतीत अनागत वर्तमान (तस्यकृत्स्नस्य) करामलक वत् समयर निरन्तर ज्ञान दृष्टि से देखते भए, अथवा परम दान्ति परम शान्ति महामहान् महानियामकमहास्वर्थवाह परमोपकारी परमगोप परम पूज्य परमपावन परम सुशील परम पण्डित परमात्मा पुरुषोत्तम इत्यादि गुणों का स्मरण अर्थात् जप करे ॥