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(२) अथ गुरु अंग सो दूसरे, निग्रन्थि गुरु जो द्रव्य गांठ बांधे नहीं, अर्थात् पक्षी की तरह किसी पदार्थ का संचय करे नहीं और भाव गांठ नहीं अर्थात् लोभ कपट को छोड़े सो ऐसे निग्रन्थि गुरु कनक कामिनी के त्यागी निस्पृही अर्थात् जैनका साधुसाधक सूई मात्र भी धातु ग्रहण न करे और एक दिन की बालिका कोभी अर्थात् स्त्री को हाथ न लगावे ९ वाड़ ब्रह्मचारी ॥
(१) पहली वाड़ ब्रह्मचर्य की शीलवान पुरुष जिसमकान में स्त्री वा पशुजाति की स्त्री वा नपुंसक (हीजड़ा) रहताहो उसमें वास करै नहीं याने एकांत स्थान इकट्ठे रहे नहीं क्योंकि विकार जागने का कारण है यथा॥ दोहा-विद्या बुद्धि विवेकवल यद्यपि होत अपार