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के रुपये प्रमाण करे और जब मुझे बाई रुपये देनेलगी तो मैंने नहीं लिये । इत्यर्थः ।
और बूटेराव बुद्धविजय जी ने तपागच्छ को । अपने मन से विलकुल अच्छा नहीं जाना था
परन्तु मुख तो खोल ही चुके थे जब कहीं || परनहीं लगते देखे तब साहूकारों के लिहाज
से तपागच्छ धारलिया यह स्वरूप उन्हीं की | बनाई हुई पूर्वक मुखपत्ति चर्चापोथी की पृष्ठ ३४ वीं से लेकर ४४ । ४५ । ४६ वीं तक बांचने से ख्याल करके मालूम करलेना हम क्या लिखें, और फिर पृष्ठ ६९ । ७० । ७१वीं परबूटेराव लिखते हैं कि १०वें अछरे में असंयतियों की पूजा हुई है सो ऐसे है कि ज्ञान | का नाम लेकर धन रक्खेंगे, संवेगी कहावेंगे यात्रा करेंगे, साधु और साध्वी एक मकान में
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