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इत्यर्थः सो देखलो पूर्वक अर्थ कहां है अपितु नहीं । तो फिर तुम ऐसे अनर्थ अर्थात् झूठे अर्थ करके लोकों को बहकाते हो और फिर " गोतमस्वामीजी ने मुखपोतिया से मुख बांधा है ऐसे लिखते हो परन्तु यों नहीं समझते कि सोलह अंगुलमात्र का अनुमान खण्डुआ वस्त्र का मुखपोतिआ होता है सो उस से मुख कैसे बांधा होगा इत्यादि चर्चा घणी है परन्तु घणे अर्थ और की और तरह करे हैं ||
और इनके दादागुरु मणि विजय जी रत्न विजय जी आदिक परिग्रहधारी हुए हैं, क्योंकि इनके गुरु बूटेराव जी ने मुखपत्ति चर्चा पोथी अहमदाबाद के छापे की में पृष्ठ ५९ में लिखा है कि मणिविजय जी ने चढ़ावे