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में साफ लिखा है,कि मुखपत्ति कान में बाधनी चाहिए यदि कानमें नहीं बांधे तो दंड
आवै फेर पूर्वोक्त पुस्तक की पृष्ट १०२ वीं । पर लिखा है कि उत्तराध्ययन अध्ययन १२
वां गाथा ६ठी "हरकेशीवल साधु को ब्राह्मण कहते भए कि तेरे होठ मोटे हैं तेरे दान्त बड़े २ हैं इत्यादि परन्तु सूत्र में देखते हैं तो यह अर्थ स्वप्नान्तर्गत भी नहीं है।
सो सूत्र यह है “कयरे आगच्छइ दित्त | रूवे काले विगरालेय फोकनासे उस चेलए पसुं पिसाए भूए संकर दूसं परि हरिय कण्ठे'
अर्थ-कौन है तू आंवदा चलाजा || देय रूप काला विकराल बैठी हुई नासिका | निःसार वस्त्र रेत से भरे, पिशाच के समान | रूड़ी के नाखे समान वस्त्र पहरे है कण्ठ