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देने से होती है और ये पूर्व पक्षियों के पूर्वक चलन तो स्वच्छन्द हैं क्योंकि इनका भेष भी जैन के सनातन भेष से अमिलित (भिन्न) है। जैसे कि सूत्र प्रश्न व्याकरण अध्ययन ८वें तथा १०वें में साधुका भेष चला है तथा और सूत्रों में भी है सो इनका नहीं है क्योंकि ये तो बदामी रंग अर्थात् भगवें से कपड़े पहरते हैं और बगल के नीचे को पछेवड़ी अर्थात् चादर रखते हैं अन्य तीर्थी संन्यासियों की तरह और एक दंड अर्थात् लम्बासा लाग मानिन्द बरछी के तीखा सा रखते हैं ।।
और इनके देव भी और प्रकार से माने जाते हैं जिन देवों को जैन के शास्त्रों में || त्यागी कहा है उन देवों को ये लोग भोगी। देवों की तरह गहना कपड़ा पहना कर फल फूल से पूजते हैं।