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उत्तरपक्षी-यह जैन की प्रभावना नहीं है क्योंकि नाचना, कूदना ढोल ढमाका तो जो कोई ऊंच नीच पुरुष दाम खर्चेगा सो वही कर लेगा और जैनी कोई स्वर्गों का बाजा तो लेही नहीं आते हैं जो दुनिया को आश्चर्य हो कि देखो जैन धर्म बड़ा अद्भुत है। जो स्वर्गों से बाजे उतरते हैं सो जो ऐसे होय तो भला धर्म की महिमा अर्थात् प्रभावना होय परन्तु ऐसे तो है नहीं ये तो वेही चर्म के बाजे हैं और वेही चण्डाल (चूड़े) आदिक बजाने वाले हैं जो हरएक गृहस्थी के व्याह शादियों में बजाया करते हैं सो कहो ऐसे डम्भ से धर्म की प्रभावना क्या हुई ? धर्म की प्रभावना तो त्याग, वैराग्य, ब्रह्मचर्य, सत्य और संतोष के करने से और दया दान के