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का पाठ है ही नहीं, और जो है तो सूत्र का पाठ हम को भी दिखाओ और जो सूत्र में नहीं है तो फिर तुम किस न्याय से ऐसी अशातना करते हो जो भगवान की हिरस करके भगवान के तुल्य अतिशय रूप महिमा को चाहते हुए ढोल ढमाके से बाज़ार में को आते हो और फिर कहते हो कि जिन धर्मकी प्रभावना हुई० तर्क० जो जिन धर्म की प्रभा वना इस तरह होती तो सुधर्म स्वामी जी
आदिकों ने बाजे गाजे के आडम्बर क्यों नहीं किये ? अपितु कहां तो साधुका परम शान्ति रूप, निस्पृह मार्ग और कहां तुम्हारा एक डोला, पुस्तक, जल घड़ा तथा सहस्र ध्वज नाम झंडा लेकर बाज़ार में ढोल ढमाके से घूमना,और इसको जैन कीप्रभावना कहना ?
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