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सो उनकेतोआगमन में अतिशय रूप महिमा किसी देव ने तथा श्रावकों ने करी ही नहीं थी क्योंकि सूत्रों में ठाम २ ऐसापाठ है कि सुधर्म स्वामीजी अमुक नगर में अमुक बाग | में “पंचसै समण सद्धिंसं परि वुडे" अर्थात् पधारे अहापडिरूवं उग्गहं गिणीता तव संय मेणंअप्याणं भावे माणे विहरई परिसा निग्गया धम्म कहियो परिषा पडिगया" इत्यादि | परन्तु ऐसा भाव कहीं नहीं है कि श्रावकों ने बाजे गाजे से लाकर बाग आदिक में उतारे, तस्मात् कारणात् तुम्हारा गाजे वाजे से नगर में आना और श्रावकों को लाना अयुक्त है क्योंकि जब ऐसे महात्मा पुरुष जो साक्षात् | जिन नहीं पर जिनके समानथे उनके आगमन में तो गाजे वाजे से नगर प्रवेश कराने