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के परचे आगे गेरो इत्यादि।और जो छमस्थ अवस्था को पूजो तो वनों में तप करते भये और पारणे को भिक्षा लेते और साढ़े बारह किरोड़ सुनईया वर्षता ऐसे बनाओ।
और जो केवल अवस्था को पूजो तो १२ बारह प्रकार की परिषदों में उपदेश करते भये परमत्याग, परम वैराग्य रूप शान्त मुद्रा ऐसे चाहिये परन्तु यह क्या गीत है कि नाले ध्यान नाले गहने, कपड़े फल फूल नाच नृत्य आदि० और जो तुम कहोगे कि देवताओं ने नाटक करें हैं, तो हम उत्तर देंगे कि देव तो अपनी ऋद्धि दिखाते हैं मनुष्यों में आश्चर्य पैदा करने को तथा देवों का जीता विहार है परन्तु आनन्द कामदेव कृष्णजी श्रेणकजी कोणक इत्यादि भक्तजन तो नहीं
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