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आदिश्रीपार्श्वनाथ जी,श्रीमहावीर स्वामीजी, सोइन का स्वरूप जैन शास्त्रों में परम विरक्त, परम वैराग्य और कनक कामिनी प्रसङ्गवर्जित ||
और सुचित पदार्थअभोगी इत्यादि भाव प्रकट होता है । फिर तुमने ऐसे निरागी देवों की पूर्वक सरागी देवों की तरह फल, फूल, नाच, नृत्य, रूप, पूजा, कौन से न्याय से प्रमाण करी है सो हम को भी बताओ ॥ और जो तुम ऐसे कहोगे कि हम चारों अवस्थाओं को मानते हैं तो फिर हम उत्तर देंगे कि जो बाल अवस्था को पूजो तो मूर्ति को झगा टोपी चक्री लट्ठ छणकणा इत्यादि देने चाहिये । और जो राज अवस्था को पूजो तो मूर्ति को राज गद्दी पै बिठाओ और दीवान वजीर आदि बना कर आगे रक्खो और मुकद्दमें