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हैं यह कुछ नई बात नहीं है और इसीलिये | उसमें कोई उजर करने को भी समर्थ नहीं है और जो आपके इस ग्रन्थ रचने के अभि-|| प्राय बमुजिब जो थोड़े काल के रचे हुए ग्रन्थानुसार तथा अपने अभिप्राय बमुजिब जो नये कथन है उनमें तो कुछ विशेष त्याग, वैराग्य तो प्रगट होता नहीं हां, ऐसा तात्पर्य प्रकट होता है कि हर एक मत की निन्दा आदिक तथा जैन मत जो शान्ति दान्ति निरारम्भ रूप है तिस के विषय में आपने यह पुष्टि बहुत रक्खी है कि मन्दिर नाम से मकान आदि बनवाना और अवतारों की नकल रूप मूर्ति रखनी और वीतराग देव की मूर्ति को सरागी देव की मूर्ति की तरह फल फूल आदि सामग्री से पूजना और
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