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निकल गया जो ध्वजा को ले गया। भला
खैर ले ही गया होगा तो हम को वह ग्रन्थ दिखाओ कि कौन से साल में और कौनसी तिथी, नक्षत्र, में लेगया अपितु नहीं, यह तो बिलकुल उपहास योग्य झूठ है जैसे किसी बालक ने लाड में आकर कहा कि मेरा विटोडा मेरु समान है । और जो इस वचन से |किसी पुरुष को क्रोध उत्पन्न होता हो तो उस पुरुष को हम क्षमावे हैं और ऐसे कहेंगे कि हे भाई! शान्ति भाव करके जैनतत्वादर्श ग्रन्थ को सूत्र द्वारा मिला कर देखलो कि जो हम ऊपर विरोधों का स्वरूप लिख आये हैं सो यह परस्पर विरोध ठीक दिखाया है वा नहीं। सो जेकर पण्डित पुरुप के लिखने में एक झूठ भी लिखा जाय तो सभा के बीच में