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किञ्चत् दया ही सिद्धान्त का सार है एतलो जाण १ ऊंचे नीचे तिरछे लोक में जेता त्रस्य स्थावर जीव है सब की हिंसा का त्याग करे दया निर्वाण कही २ तस्मात कारणात् निरव मार्ग अर्थात् दया मार्ग ही प्रधान है । और फिर देखना चाहिये कि जैन तत्वादर्श ग्रन्थ रचने वाले ने पण्डिताई में तो कसर रक्खी नही परन्तु झूठे गपौड़े भी बहुत लिख धरें हैं जैसे कि पत्र ५७७ वें पर लिखा है कि "विक्रम संवत् १३४० के लग भग में पृथ्वी धर राजा के बेटे जांजण ने उज्जयन्त गिरि के ऊपर १२ योजन ऊंची सोने रूपे की ध्वजा चाढ़ी । तर्क • भला सोचना चाहिये कि ४८ अठतालीस कोस ऊंची ध्वजा कैसे किस के सहारे खडी करी होगी क्योंकि आध कोस