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ज्ञान और कर्म। . [प्रथम भाग रेज, जर्मन, फ्रेंच आदि श्रेणियाँ होंगी। रंगके अनुसार भी श्रेणीविभाग हो सकता है, और तब कृष्णवर्ण, शुक्लवर्ण, गौरवर्ण, आदि श्रेणियाँ होंगी। किन्तु एक साथ ऐसा करना संगत न होगा कि मनुष्यों में कुछ हिंदू हैं, कुछ बौद्ध हैं, कुछ भारतवासी हैं, कुछ चीननिवासी हैं, कुछ गोरे है और कुछ काले हैं। कारण, एक ही मनुष्य हिन्दू, भारतवासी और गोरे रंगका, या हिन्दू, भारतवासी और काले रंगका, या बौद्ध, भारतवासी और काले रंगका, अथवा बौद्ध चीनवासी और गोरे रंगका हो सकता है।
२-जिनका विभाग करना है उन विषयोंका विभागकी किसी-न-किसी श्रेणी में आना अवश्यक है। ऐसा होनेसे काम नहीं चल सकता कि जिनका विभाग करना है उन विषयोंमेंसे कुछ विषय किसी भी श्रेणीके बीच न आवें।
३-विभागकी श्रेणियाँ परस्पर पृथक् होनी चाहिए। ऐसा होनेसे काम नहीं चल सकता कि विभाज्य विषयोंमेंसे कोई विषय एकसे अधिक श्रेणियों में आ जाय।
बुद्धि जो है सो ज्ञात विषयोंको श्रेणीबद्ध करके, अर्थात् तदनुसार जातिविभाग और जातीय नामकरण करके, उन सब ज्ञात विषयोंसे नवीन नवीन विषयोंका निरूपण करती है। यह नये विषयोंके निरूपणका काम दो तरहका है। एक विशेष विशेष तत्त्वोंसे साधारण तत्त्वका निर्णय, और दूसरा साधारण तत्त्वोंसे विशेष तत्त्वका निर्णय । जैसे (१) शिला पहले जितनी बार जलमें डाली गई उतनी बार डूब गई, इसी लिए बादको शिला जितनी बार जलमें डाली जायगी उतनी ही बार डूब जायगी। (२) लोहा जितनी बार जलमें डाला गया उतनी ही बार डूब गया, इसी लिए बादको लोहा जितनी बार जलमें डाला जायगा उतनी बार डूब जायगा । (३) शिला, लोहा आदि पदार्थ जलकी अपेक्षा भारी हैं, इससे जलमें डूब जाते हैं। इसी तरह जो वस्तु जलसे भारी होगी, अर्थात् जिस वस्तुका कोई आयतन (लंबाई-चौड़ाई) अपने समान आयतनके जलकी अपेक्षा वजनमें अधिक होगा, वह जलमें डूब जायगी। ये तीनों बुद्धिके प्रथमोक्त प्रकारके कार्यके अर्थात् विशेष तत्त्वसे साधारणतत्त्वके निरूपणके दृष्टान्त हैं । ( ४ ) जलकी अपेक्षा भारी सभी वस्तुएँ डूब जाती हैं। पीतल जलकी अपेक्षा भारी है, इस लिए पीतल जलमें डूबेगा । यह बुद्धिके दूसरे प्रकारके कार्यका, अर्थात् " जलकी अपेक्षा भारी