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तीसरा अध्याय ]
अन्तर्जगत्।
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कि वैसी अभिज्ञतासे संपन्न कोई मनीषी विद्वान् इस रहस्यको संपूर्ण रूपसे खोल सकेगा या नहीं। ___ यद्यपि भाषाकी सृष्टिका तत्त्व अत्यन्त दुर्जेय है, तथापि भाषाके कार्यको हम सहज ही देख पाते हैं कि वह अत्यन्त विचित्र और विस्मयजनक है। पहले ही कहा जा चुका है कि भाषा चिन्तनकार्यका एक प्रबल सहायक है। पदार्थके नाम और रूपको लेकर ही चिन्ताका कार्य चलता है, और उनमें रूपकी अपेक्षा नाम ही अधिक स्थलों में अवलंबनीय होता है। शब्दकी शक्तिका बखान अनेक शास्त्रोंमें किया गया है। छान्दोग्य उपनिषद्के प्रथम अध्यायमें पहले ही ओंकारको एक प्रकार सृष्टिका सार कहा है। ग्रीसमें प्लेटोने शब्द या वर्णको अशेषरहस्यपूर्ण बतलाया है। ईसाइयोंके धर्मशास्त्रमें भी शब्दको सृष्टिका आदि माना है ।। शब्दोंसे ही मन्त्रकी रचाना हुई है, और मन्त्रबल असाधारण बल है। यहाँ पर मन्त्रकी देवशक्ति माननेकी जरूरत नहीं है। शब्दके द्वारा जो वाक्य रचित होते हैं, उन सबको मन्त्र कहा जा सकता है, और उन्हींके द्वारा यह संसार शासित हो रहा है। शब्द या भाषाके द्वारा ही गुरु शिष्यको शिक्षा देते हैं। भाषाहीके द्वारा एक समय या एक देशमें प्राप्त ज्ञान दूसरे समय या दूसरे देशमें प्रचारित होता है। भाषाके ही द्वारा राजा अपनी प्रजाको आज्ञानुसार चलाते हैं । शब्दहीके द्वारा सेनापति अपनी सेनाको ठीक जगह पर काममें नियुक्त करते हैं। भाषाहीकी सहायतासे देशदेशान्तरमें फैला हुआ बनिज-बैपार चलता है। भाषाहीके द्वारा हम लोगोंके चित्तमें सब अच्छी-बुरी प्रवृत्तियाँ उत्तेजित होकर हमें शुभाशुभ कमामें प्रवृत्त करती हैं। भाषामें रचे गये शास्त्रोंकी आलोचनासे ही परमार्थतत्त्वकी खोज करते हुए साधु महात्मा पुरुष शान्तिलाभ करते हैं।
श्रेणीविभागका कार्य तीन नियमों के अनुसार होना आवश्यक है।
१-श्रेणीविभाग अनेक भित्तिमूलक हो सकता है। लेकिन एक श्रेणीकी एक ही भित्ति होनी चाहिए। ___ मान लो, मनुष्यजातिका श्रेणीविभाग करना है, तो वह धर्मके अनुसार भी किया जा सकता है, और वैसा करने पर हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध आदि श्रेणियोंमें मनुष्यसमाज विभक्त होगा। मनुष्यजातिका श्रेणीविभाग देशानुसार भी किया जा सकता है, और करने पर भारतवासी, जापानी, अंग