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तीसरा अध्याय ]
अन्तर्जगत्।
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इसी तरहका आभास दिया है । किसी किसीने दो-एक भाषाओंकी आदिम अवस्थाके उदाहरण दिखा कर उक्त मतका समर्थन करनेकी चेष्टा की है। भाषाकी सृष्टि किस तरह हुई, यह जाननेकी इच्छा सभीके होती है, और यह जाननेके लिए बुद्धिमान् विद्वानोंने बहुत कुछ प्रयास किया है, तरह तरहके अनुमान और कल्पनाएँ की हैं। उन सब अनुमानोंमें उल्लिखित अनुमान बहुत कुछ संगतसा जान पड़ता है। किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि भाषासृष्टिका निगूढ तत्त्व अच्छी तरह जान लिया गया है । यह विषय अत्यन्त दुरूह है। इसके तत्त्वका अनुसन्धान करना हो तो दो-एक आदिम असभ्य जातियोंकी भाषा (जिसकी शब्दसंख्या थोड़ी और गठन सरल होगी) के साथ दो-एक सभ्य जातियोंकी परिमार्जित भाषा, जैसे संस्कृत भाषा मिला कर देखनेकी और उन उन भाषाओंके सम्बन्धमें ऊपर कहा गया अनुमान कहाँ तक संगत होता है-इस बातकी परीक्षा करनेकी आवश्यकता है। उस मिलाने या जाँचनेके काममें, जो शब्द दूसरी भाषासे लिये गये हैं, या दस आदमियोंकी इच्छाके अनुसार परामर्श करके कल्पित हुए हैं, उन्हें छोड़ देना आवश्यक है। इन दोनों श्रेणियोंके शब्द भाषाकी मूल सृष्टिका कोई निदर्शन नहीं दे सकते । कोई भी भाषा पूर्ण रूपसे दूसरी भाषासे नहीं ली गई है। मगर ऐसा होने पर भी प्रश्न उठेगा कि उस दूसरी भाषाकी सृष्टि कैसे हुई ? दस आदमी इच्छाके अनुसार परामर्श करके भी पहले पहल किसी भाषाकी सृष्टि नहीं कर सकते । कारण, यहाँ पर भी प्रश्न होता है कि भाषाकी सृष्टिके पहले दस आदमियोंका वह परामर्श किस भाषामें हुआ ? वास्तवमें यद्यपि दूसरी भाषासे शब्द लेकर, या परामर्श करके पारिभाषिक आदि नये शब्द गढ़ कर, इन दोनों प्रकारकी प्रक्रियाओंसे भाषाकी पुष्टि हो सकती है और हुआ करती है, लेकिन इन प्रक्रियाओंके द्वारा मूलभाषाकी सृष्टि होना कभी संभव नहीं। अतएव उक्त दोनों प्रकारके शब्द छोड़ कर, मनुष्यकी आदिम असभ्य अवस्थामें जो शब्द अत्यन्त प्रयोजनीय हो सकते हैं उन्हींको लेकर अनुसन्धान करना होगा कि किस लिए वे जिस जिस अर्थमें व्यवहृत होते हैं उस उस अर्थक बोधक हुए। ऊपर जो कहा _ * Darwin's Descent of Man, 2nd. Ed., p. 86; Deussen's Metaphysics, p. 90; Max Muller's Science of Thought, Ch. x देखो।