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________________ और उनमें भी ऐसे तो दो चार ही हैं जिन्होंने इस प्रकारका ज्ञान प्राप्त करके उसे जनताके सामने उपस्थित करनेका प्रयत्न किया है। इस ग्रन्थके लेखक स्वर्गीय न्यायधीश सर गुरुदास वन्द्योपाध्याय ऐसे ही विद्वानोंमेंसे एक थे । उनके इस ग्रन्थकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें पाठकोंको पूर्वीय और पश्चिमीय विचारोंके दीर्घकालीन अध्ययनके परिपक्व फलका आसाद मिलेगा। मनुष्यके अन्तर्जगत् और बहिर्जगत्से सम्बन्ध रखनेवाली जितनी भी बातें हैं, उसके आत्मिक, मानसिक और शारीरिक सुखोंको बढ़ानेवाले जितने भी साधन हैं और परिवार, जाति, सम्प्रदाय, देश, राज्य, आदिके प्रति उसके जितने भी कर्तव्य हैं, इस ग्रन्थमें उन सभी पर प्रकाश डाला गया है । गहरेसे गहरे दार्शनिक और तात्विक विचारोंसे लेकर साधारणसे साधारण सगाईविवाह, खान-पान और वेष-भूषा सम्बन्धी बातोंकी भी इसमें चर्चा की गई है। सच तो यह है कि ऐसा कोई भी विषय नहीं है जिस पर इसमें कहीं न कहीं, मुख्य या गौणरूपमें, विचार न किया गया हो । अतएन इस ग्रन्थके सम्बन्धमें निःसंकोच होकर यह बात कही जा सकती है कि-" यन्नेहास्ति न तत्क्व चित।" ___ ग्रन्थकी रचनाप्रणाली बड़ी ही प्रौढ़ और शृंखलाबद्ध है। ग्रन्थकर्तीने इस विषयमें प्राचीन भारतीय ग्रन्थकर्ताओंकी उस दार्शनिक शैलीका अनुसरण किया है जिसमें सब विषय यथास्थान और यथाक्रम आते जाते हैं और किसी सिद्धान्तसे सम्बन्ध रखनेवाला कोई विषय छूटने नहीं पाता। ___ ग्रन्थकर्ता यद्यपि अनेक अंशोंमें भारतीय विचारोंके भक्त हैं; फिर भी उन्होंने कहीं भी अपनी न्यायशीलता और तटस्थताको स्खलित नहीं होने दिया है । न उन्होंने पाश्चात्य विचारोंकी कहीं अवहेलना की है और न पूर्वीय विचारोंके प्रति अनुचित पक्षपात किया है । जहाँ उन्होंने बहुतसे पाश्चात्य विचारोंको विवेकपूर्वक ग्रहणीय समझा है, वहाँ बहुतसे अविचारितरम्य पूर्वीय विचारोंको त्याज्य बतलाने में भी भय नहीं खाया है। यह बहुत संभव है कि विविध रुचियों और विचारों के पाठक इस ग्रन्थके सभी विचारोंसे सहमत न हों-संसारमें आज तक इस प्रकारका कोई ग्रन्थ बना भी नहीं है जिसके सभी सिद्धान्त लोगोंने पसन्द किये हों-परन्तु यह
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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