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ज्ञान और कर्म। [तीसरा अध्यायः इनके सिवा अन्तर्जगत्की और एक तरहकी क्रिया है । जैसे, इच्छा औरै प्रयत्न अर्थात् कर्म करनेकी चेष्टा ।
इन सब क्रियाओं या शक्तियोंकी अच्छी तरह पूर्ण रूपसे आलोचना करनके लिए बहुतसा स्थान और समय चाहिए। यह विषय भी इस क्षुद्र ग्रन्थका उद्देश्य नहीं है । तो भी हरएक क्रियाके सम्बन्धमें संक्षेपमें कुछ कहा जायगा। ___ यहाँपर एक विषयका उल्लेख करना आवश्यक है । स्मरणकल्पना आदि कार्य मनकी या आत्माकी भिन्न भिन्न शक्तियोंके द्वारा संपन्न होते हैं, यह बात कहनेमें अनेक लोग आपत्ति करते हैं। वे कहते हैं कि मन या आत्मा एक पदार्थ है; उसके भिन्नभिन्न शक्तियोंके रहनेका कोई प्रमाण नहीं है। जैसे देहके भिन्नभिन्न भागोंमें भिन्नभिन्न इन्द्रिय आदि अंगपत्यंग हैं, वैसे ही मन या आत्माके भिन्नभिन्न भागों में भिन्नभिन्न शक्तियाँ हैं, ऐसा समझनाअवश्य ही भ्रान्तिमूलक है। कारण, मनके या आत्माके भिन्नभिन्न नाम होनेका अनुमान नहीं किया जा सकता । किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि स्मरण, कल्पना आदि भिन्नभिन्न कार्य उसके हैं, और उन कार्योंके करनेकी शक्ति भी निःसन्देह मन या आत्माके है । अतएव मनकी या आत्माकी स्मरण-कल्पना आदि भिन्नभिन्न कार्य करनेकी शक्ति अगर भिन्नभिन्न नामोंसे पुकारी जाय और भिन्नभिन्न भावसे विवेचित हो, तो उसमें कोई संगत बाधा नहीं देखी जाती। किन्तु यह बात याद रखना उचित है कि आत्माके कोई कार्य करनेकी शक्ति है, यह कह देनेसे ही उस कार्यके तत्त्वकी संपूर्ण खोज या कारणका निर्देश नहीं होता।
स्मृतिके संबन्धमें प्रधानरूपसे इन कई बातोंकी विवेचना करनी है । १स्मृतिके विषय क्या क्या हैं, २-स्मृतिका कार्य किसतरह संपन्न होता है, ३-स्मृतिका कार्य किन किन नियमोंके अधीन है ? ४-स्मृतिका ह्रास या वृद्धि क्यों और कैसे होती है ?
१-स्मृतिके विषय । जो देखा या सुना है वह स्मरण किया जाता है। देखे हुए विषयका स्मरण होनेसे वह मन ही मन चित्रित किया जाता है. और स्मरण करनेवाला अगर चित्रविद्या में निपुण होता है तो वह उस विषयको अंकित करके ओरको दिखा सकता है। वैसे ही सुने हुए विषयका स्मरण होनसे उसकी ध्वनिकी आवृत्ति की जाती है, और स्मरण करनेवाला अगर