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तीसरा अध्याय ] अन्तर्जगत्। ध्वनिकी आवृति करनेके काममें निपुण होता है तो वह सुने हुए विषयकी आवृति करके अन्यको सुना सकता है। पहले कभी अनुभव किये गये घ्राण (किसी गंधको सूंघने ), आस्वादन (किसी रसका स्वाद लेने ) या स्पर्श ( किसी वस्तुको छूने ) का स्मरण वैसे ही नहीं किया जाता। इनका स्मरण बस यहीं तक किया जाता है कि वह सूंघना या छ्रना अमुक पदार्थके सूंघने या छूनेकी तरह था । केवल यही कहा जा सकता है। उसी तरहके सूंघने, चखने या छूनेका फिर अनुभव होने पर यह भी कहा जा सकता है कि वह पहलेके सूंघने, चखने या छूनेके समान है।
२-स्मृतिका कार्य कैसे होता है ?-स्मृतिका कार्य अति विचित्र है, वह कैसे संपन्न होता है-यह कहना सहज नहीं । पूर्ण ज्ञानके लिए भूत, भविष्य, वर्तमान, ये तीनों काल एक हैं, और सभी ज्ञानोंके विषय एक समयमें उसी ज्ञानकी अनन्त परिधिके भीतर विद्यमान होते हैं। किन्तु अपूर्ण ज्ञानके लिए ज्ञात विषयका केवल थोड़ा अंश ही एक समयमें ज्ञानकी सीमाके भीतर प्रकट रहता है, और उस ज्ञानका अधिकांश उस सीमाके बाहर अप्रकट रूपसे अवस्थित रहता है, और वह स्मृतिके द्वारा कभी चेष्टा करनेसे और कभी बिना चेष्टाके ही उस ज्ञानकी सीमाके भीतर आता है। यहाँतक अन्तर्दृष्टिके द्वारा अनायास ही जाना जाता है। किन्तु याद किये जानेके पहले वे सब ज्ञात विषय कहाँ, किस तरह, रहते हैं, और किस तरह स्मृतिगोचर होते हैं, यह कहना सहज नहीं है।
कोई कहते हैं, किसी विषयका प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न होनेके समय इन्द्रियस्फुरण मस्तिष्कमें पहुंचता है और उससे वहाँ स्पन्दन और कुंचन होता है। जब वह स्पन्दन थम जाता है तब ज्ञात विषय ज्ञानकी सीमाके बाहर पड़ जाता है, किन्तु मस्तिष्कका कुंचन वैसा ही रह जाता है । बादको ज्ञाताकी इच्छाके अनुसार या अन्य कारणसे अपने निकटवर्ती या संसृष्ट किसी भागकी गतिविशेषके द्वारा वह कुंचित भाग फिर स्पंदित होता है और तब वह ज्ञात विषय फिर स्मरण हो आता है। यह बात सच हो सकती है। हम लोगं विस्मृत विषयको स्मरण करनेके लिए उसके आनुषंगिक विषयोंकी ओर ध्यान दिया करते हैं। हमारी यह प्रक्रिया उक्त सिद्धान्तकी सचाईको बहुत कुछ प्रमाणित करती है। किन्तु बात सच होने पर भी, उसके द्वारा स्मृतिक्रियाका
ज्ञान०-३