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तीसरा अध्याय ] अन्तर्जगत् । हैं। वह स्नायुओंका स्पन्दन मस्तिष्कमें पहुंचकर सूंघने, चखने और छूनेके ज्ञानको उत्पन्न करता है । आँख, कान आदि इन्द्रियोंके स्फुरण द्वारा बहिर्जग त्का प्रत्यक्ष ज्ञान पैदा होता है और साथ ही साथ इस बातकी संज्ञा प्राप्त होती है कि ज्ञातामें वह ज्ञान उत्पन्न हो रहा है।
इनके सिवा अन्तर्जगत्की और भी कुछ विचित्र क्रियायें हैं। जो एक बार प्रत्यक्ष हो चुका है वह बादको प्रत्यक्ष न हो तो भी वह फिर ज्ञानकी परिधिके भीतर लाया जा सकता है। जैसे, एक समय विश्वनाथका मंदिर मैंने देखा है, या वेदमंत्र पढ़ा है। अन्यसमय उसे न देखकर या न सुनकर भी मैं उस मंदिरके रूपका वर्णन कर सकता हूँ या उस मंत्रका शब्दविन्यास सुना सकता हूँ। इस क्रियाका नाम है स्मरण करना, और जिस शक्तिके द्वारा यह संपन्न होता है, उसे स्मृति कहते हैं।
जो प्रत्यक्ष हो चुका है, उसे जिसरूपसे प्रत्यक्ष किया है ठीक उसी रूपसे स्मरण न करके, कल्पित परिवर्तित रूपसे भी मैं ज्ञानकी परिधिके भीतरलासकता हूँ। जैसे, घोड़ा या हाथी देखा है, और घोड़ेकी तरहके पैर आदि अंगवाले और हाथीकी तरह मस्तकवाले पशुका रूप भी मैं अपने मनके सामने उपस्थित कर सकता हुँ। इसी क्रियाको कल्पना करना, और उसे सम्पन्न करनेकी शक्तिको कल्पना कहते हैं।
जो प्रत्यक्ष या कल्पित हुआ है, उसका जातिविभाग और उस जातिका नाम रखकर उससे मैं नवीन तत्त्वको ज्ञानकी परिधिके भीतर ला सकता हूँ। जैसे किसी जगह तरह तरहके जन्तुओंको देखकर, उनमेंसे कुछको गोजाति, कुछको अश्वजाति, कुछको मेषजाति ठीक करके, उनके गऊ, घोड़ा, मेष आदि नाम रख सकते हैं। किसी जगहपर धुआँ देखकर हम यह निश्चय कर सकते हैं कि वहाँपर आग है। दो सरल रेखाओंमेंसे हरएक रेखा दूसरी रेखाके साथ समान्तर है, यह कल्पनाकरके हम इस सिद्धान्तपर पहुँच सकते हैं कि वे परस्पर समान्तर हैं। इन सब क्रियाओंका नाम अनुमान है। जिस शक्तिके द्वारा ये क्रियायें संपन्न होती हैं उसे बुद्धि कहते हैं । __ ऊपर कही गई क्रियाओंके सिवा अन्तर्जगत्की और एक श्रेणीकी क्रिया है, जैसे-सुख, दुःख, प्रीति, हिंसा, भक्ति, घृणा, अनुराग, विद्वेष आदिका अनुभव करना।