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ज्ञान और कर्म ।
[ द्वितीय भागा
साधारण प्रजातन्त्र ।
जिस शासनप्रणाली में देशके साधारण प्रजावर्गके, उन लोगोंमेंसे निर्दिष्ट लक्षणयुक्त प्रजागणकी समष्टिके, हाथमें राजशक्ति है, वह साधारण प्रजातन्त्र ( Democracy ) कहलाती है । प्रजाकी संख्या अधिक होनेपर ( वर्तमान काल में सभी देशो में प्रजाकी संख्या अधिक है ) यह संभवपर नहीं है कि प्रजावर्ग एकत्र होकर राष्ट्रका काम चला सकें । अतएव वर्तमान कालमें प्रजावर्ग साधारण प्रजातन्त्रके राजकार्यके सम्पादनार्थं नियमितरूपसे निर्दिष्ट या अनिर्दिष्ट कालके लिए यथासंभव निर्दिष्ट संख्याके प्रतिनिधियों का निर्वाचन करता है, और उन्हीं प्रतिनिधियोंका समूह राष्ट्रके सब कामों को चलाता है । किसी किसी राजनीतिज्ञका ( १ ) मत है कि ऊपर लिखी हुई विविध प्रकारकी शासनप्रणालियोंके सिवाय और भी एक शासनप्रणाली है,. अथवा यों कहो कि पूर्वकालमें थी, और उसे 'पुरोहित-तन्त्र' कह सकते हैं 1
ऊपरकी प्रथमोक्त तीन प्रकारकी मूल शासनप्रणालियों में कहीं एक और कहीं दूसरी प्रचलित है । और, किसी किसी देशमें इन तीनों प्रणालियोंकी, या उनमेंसे किन्हीं दोकी, मिश्रित शासनप्रणाली प्रचलित है । जैसे ब्रिटिशसाम्राज्य में राजा, विशिष्ट प्रजाओं की सभा ( हाउस आफ लाईस ) और साधारण प्रजाओं की सभा ( हाउस आफ कामन्स ) इन तीनोंका अपूर्व मिलन देख पड़ता है, और इन तीनोंके मिलनेसे जो सभा ( पार्लमेण्ट ) गठित है, उसीके हाथमें पूर्ण राजशक्ति है।
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भिन्न भिन्न शासनप्रणालियोंके दोष-गुण ।
ऊपर लिखी गई पहलेकी तीन शासनप्रणालियोंमेंसे हरएक दोष-गुण-युक्त है । एकेश्वर राजतन्त्रमें गुण यह है कि उसकी शक्ति अन्य प्रकारके राष्ट्रतन्त्रोंकी शक्तिकी अपेक्षा अधिक प्रबल होती है, और अधिक सहज में ही उसका परिचालन होता है । आदमीके हाथमें क्षमता रहनेसे जितने सहज में उसका प्रयोग हो सकता है, दस आदमियों के हाथमें क्षमता रहनेसे उतने सहज में उसका प्रयोग होना
एक
( १ ) Bluntschli's Theory of the State, Bk VI, chs. 1 and. VI देखो ।