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चौथा अध्याय ]
एक ओरसे देखनेनें जान पड़ता है कि निर्वाचित होनेके लिए जो जितना उद्योगहीन है, वह उतना ही योग्य है। लेकिन हीं. इस बारेसें कोई कोई सन्देह कर सकते हैं कि जो उद्योगहीन है वह निर्वाचित होनेपर अपने उस पदका काम करनेमें कहाँतक तत्परता दिखा सकेगा ? किन्तु वैसे आदमीकी कर्तव्यपरायणताके ऊपर निश्चिन्त भावसे भरोसा किया जा सकता है, और यह आशंका अमूलक हैं कि वह कर्तव्यपालनमें भी उदासीन ही रहेगा ।
सामाजिक नीतिसिद्ध कर्म ।
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( ३ ) निर्वाचन करनेवालोंको स्मरण रखना चाहिए कि उन्हें जो चुनामें मत प्रकट करनेका अधिकार है वह केवल उनके अपने अपने हिनके लिए नहीं है, सारी समितिके हितके लिए हैं । अतएव वह अधिकार जिम्मेदारी भी रखता हैं । और वह मत मनमाने ढंगसे प्रकाशित न होना चाहिए, बल्कि यथासमय समितिके हितपर दृष्टि रखकर, प्रार्थियोंमेंसे जो अधिक योग्य हो उसीके अनुकूल प्रकट किया जाना चाहिए ।
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निर्वाचकों से अनेक लोग सोच सकते हैं कि जहाँ पर एकसे अधिक पदों के लिए एक साथ निर्वाचन हो, और पदोंकी अपेक्षा प्राथियोंकी संख्या अधिक हो, तथा प्रार्थियोंमें एक आदमी बहुत ही योग्य और उन ( निर्वाचकों) की विशेष श्रद्धाका पात्र हो, वहाँ केवल प्रथम पदके लिए उसी योग्य और विशेष श्रद्धाभाजनके अनुकूल मत देकर अन्य किसी भी प्रार्थीके अनुकूल मत न प्रकट करना ही अच्छा है; कारण, ऐसा होनेसे उस श्रेष्ठ प्रार्थीसे अनुकूल ओरोंके अधिक मत अर्थात् वोट इकट्ठे हो जायेंगे, उसके निर्वाचनकी बाधा कम हो जायगी, और दूसरा निर्वाचित आदमी चाहे जो हो, उसमे कुछ हानि-लाभ नहीं । किन्तु यह समझना भी विधिविरुद्ध है। निर्वाचकोंका कर्तव्य है कि वे अपने ज्ञानके अनुसार, जिन जिन पदोंके लिए लोग चुने जायेंगे उन उन पदों के लिए योग्य आदमीके अनुकूल मत प्रकट करें । ऐसा न करनेसे वे अपने कर्तव्यका पालन न करनेके दोष भागी होंगे। फिर, ऊपर जिस कौशलका उल्लेख किया गया है, उसका फल भी क्या होगा, यह कोई पहलेसे नहीं कह सकता । उक्त कौशल करनेवालोंके स्वीकार करनेके अनुसार ही तो द्वितीय पदके लिए उनके कोई मत प्रकट न करनेसे उस पदके लिए अयोग्य आदमी भी चुना जा सकता है, और पहला पद भी उनके विशेष श्रद्धापात्र आदमीको न मिलकर दूसरे किसीको मिल सकता है ।