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चौथा अध्याय] सामाजिक नीतिसिद्ध कर्म।
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एक साथ रहना है, तब उनके परस्पर सद्भाव स्थापित करनेकी बड़ी आवश्यकता है। दोनों कुछ सोचकर समझसे काम लें, तो वह असाध्य या दुःसाध्य भी नहीं है। मुसलमान लोग इस देशमें बहुत दिनोंसे हैं। वे लोग जब पहलेपहल आये थे उस समय, और उसके कुछ दिन बाद तक भी, हिन्दु
ओंके साथ उनका असद्भाव था। किन्तु वे दिन चले गये । इस समय उस बकाया हिसाबके निकालनेकी जरूरत नहीं है । इस समय बहुत दिनोंसे दोनोंमें सद्भाव होता आ रहा है। उस सद्भावको बढ़ानेकी चेष्टा करना सबका कर्तव्य है।
हिन्दू और मुसलमान कभी एक जाति हो सकेंगे या नहीं, यह मैं नहीं कह सकता। किन्तु देशकी शिक्षा, स्वास्थ्य, शिल्प, वाणिज्य आदिकी उन्नति करनेमें वे सभी बिना किसी रुकावटके एकसमाजबद्ध होकर काम कर सकते हैं । अनेक जगह ऐसा करते भी हैं, और सब जगह ऐसा ही करना कर्तव्य है।
२ प्रतिवासीसमाज और उसकी नीति । हमारा परोसियोंके साथ अति घनिष्ट सम्बन्ध है । प्रतिवासीके इष्ट अनि. टके साथ हमारा अपना इष्ट-अनिष्ट अनेक प्रकारसे विजड़ित है। एक परोसीके घरमें कोई संक्रामक रोग उपस्थित होनेपर हमारे अपने घरमें और अन्य परोसीके घरमें उस रोगके पहुंचनेकी संभावना है, अतएव परोसी लोग सुस्थ रहें, यह देखना हमारा कर्तव्य है । केवल हमारा घर साफ रहना ही यथेष्ट नहीं है। किसी परोसीका घर गंदा रहनेसे उसके कारण वहाँ रोग प्रवेश कर सकता है, और वह रोग क्रमशः हमारे परिवारके लोगों पर भी आक्रमण कर सकता है। हमारे किसी परोसीके घरमें कोई अमंगल घटना होनेसे, उसे देखकर या सुनकर हमारे परिवारके लोगोंको सन्ताप अथवा त्रास हो सकता है, और उस सन्ताप या त्रासके कारण उनका स्वास्थ्य और उत्साह नष्ट हो सकता है । किन्तु हमारे परोसी अगर सुख और स्वच्छन्दतासे रहेंगे, तो उसे देखकर हमारे परिवारके लोग उल्लास उत्साह पाकर सुखी हो सकते हैं। अतएव सहानुभूति उपकारकी इच्छा आदि परार्थपरायण प्रवृत्तियोंकी बात छोड़ देनेसे भी, यथार्थ स्वार्थपरताके अनुरोधसे परोसियोंका दुःख दूर करने और उन्हें सुखी बनानेका यत्न करना हमारा कर्तव्य है।