________________
चौथा अध्याय ] सामाजिक नीतिसिद्ध कर्म ।
२८९
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥ अर्थात् जो लोग पण्डित हैं वे विद्याविनयसम्पन्न ब्राह्मणको, गऊको, हाथीको, कुत्तेको और चाण्डालको, सबको सम-दृष्टि से देखते हैं। ___ मर्यादापुरुषोत्तम आदर्शचरित्र रामचन्द्रने गुह (चाण्डाल) के साथ मित्रता की थी। अतएव हीनजाति कहकर किसीकी अवज्ञा करना हिन्दूमात्रका कर्तव्य नहीं है। ___ जातिभेद या वर्णभेदने एक समय समाजकी उन्नतिमें सहायता की है (6)। किन्तु इस देशकी और हिन्दूसमाजकी इस समय जैसी अवस्था है, उससे निम्नश्रेणीकी जातियोंने बहुत कुछ उन्नति पाई है, अतएव वे आदरके योग्य हुई हैं । इस समय पहलेकी तरह उनका अनादर करना उनके साथ अन्याय व्यवहार करना होगा, और उससे समाजका भी अपकार होगा। कारण उससे वर्ण-वर्णमें वैरभाव उपस्थित होनेके कारण हिन्दुसमाज छिन्नभिन्न तथा और भी निर्बल हो जायगा। अतएव न्यायपरता और आत्मरक्षा इन दोनोंके अनुरोधसे आवश्यक है कि हिन्दूसमाज संकीर्णता छोड़कर उदार भाव धारण करे । रोटी-बेटीके सम्बन्धको छोड़कर, अन्यान्य मामलोंमें निम्नश्रेणीकी जातियोंके साथ आत्मीय भावसे व्यवहार करना, इस समय उच्च हिन्दूजातियोंका परम कर्तव्य है। यही उच्च हिन्दू प्रकृतिके योग्य है, और यही उदार हिन्दूशास्त्रके द्वारा अनुमोदित है।
कोई कोई कह सकते हैं कि रोटी और बेटी इन्हीं दो मामलोंको क्यों बाद किया जाय ? इस प्रश्नके दो अच्छे और ठीक उत्तर हैं। एक तो, इन दो बातोंको बाद किये विना काम नहीं चलेगा। कारण, असवर्णविवाह जो है वह केवल हिन्दूशास्त्र में नहीं, अदालतमें प्रचलित हिन्दू-लाके अनुसार भी असिद्ध है । और, लौकिक हिन्दूविवाहका आईन (सन् १८७२ ई० का १५ वाँ आईन) हिन्दुओंके लिए लागू नहीं होता । फिर अनेक हिन्दुओंका अटल विश्वास है कि निम्न वर्णके साथ भोजन करना शास्त्रमें निषिद्ध है और वैसा करनेमें अधर्म होगा। इस विश्वासके विरुद्ध आचरणकी चेष्टा अवश्य
(२) Marshall's Principles of Economics P.304देखो।
ज्ञा०-१९