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ज्ञान और कर्म ।
[द्वितीय भाग
लिए, भलाई करनेके लिए, भी उत्तेजना देती है । आईन और समाजनीतिके कार्यक्षेत्र में जैसे अन्तर है, बैले ही शासनमें भी अन्तर है। आईनका क्षेत्र संकीर्ण है, किन्तु शासन कठिन है। समाजनीतिका क्षेत्र विस्तृत है, किन्तु शासन कोमल है। कोई आदमी अगर किसीको, बिनाबदलेके, दो दिन के बाद कुछ धन देनेके लिए कहकर फिर न दे, तो उस जगह आईन हस्तक्षेप नहीं करेगा, किन्तु समाज उस आदमीको, जिसने कहकर फिर नहीं दिया, निन्दनीय ठहरावेगा । और अगर किसी वस्तुके बदलेमें वह धन देनेका वादा किया गया हो तो उस जगह आईन हस्तक्षेप करेगा, और जिसे वह धन मिलना चाहिए उसे वसूल करके दिला देगा।
५ किसी समाज या समितिका कार्य उस समाज या समितिके अन्तर्गत अधिकांश लोगोंके मतके अनुसार होना चाहिए। यही समाज या समितिका साधारण नियम है। मगर किसी किसी जगह इसका व्यक्तिक्रम भी देखा जाता है । जैसे-जहाँ समाजपतिकी, या समितिके सभापतिकी, अथवा समाजकी कार्यकारिणी सभाकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, अथवा समाजके अन्तर्गत सभी व्यक्तियोंका समान-शिक्षित और सद्विवेचक होना संभवपर नहीं है, ऐसे स्थलों में समाजके या समितिके अधिकांश आदमियोंकी इच्छाके अनुसार पुराने नियमको निकाल डालना या किसी नये नियमको चला देना, समाजपति या कार्यकारिणी सभाके द्वारा रोका जा सकता है। किन्तु समाजपति सभापति या कार्यकारिणी सभा खुद सारे समाजकी इच्छाके विरुद्ध पुराने नियमको रद भी नहीं कर सकती और नये नियमको चला भी नहीं सकती। साधारणतः अधिकांश व्यक्तियोंके मतानुसार कार्य करनेके नियमका कारण यह है कि एक तो जिस कार्यके द्वारा सारे समाजकी हानि या लाभ हो सकता है वह कार्य समाजके-कमसे कम अधिकांश आदमियोंके-मतानुसार होना ही न्याय-संगत है। और, दूसरे, हरएक व्यक्तिका मत उसकी पूर्व. शिक्षा और पूर्व संस्कारका फल है, और उसका भ्रान्त होना असंभव नहीं है। इसी कारण हम सबके मत इसीतरह परस्पर विभिन्न हैं। अतएव जो मत किसी समाजके अधिकांश व्यक्तियोंके द्वारा अनुमोदित है, उसका व्यक्तिविशेषकी कुशिक्षा या कुसंस्कारके द्वारा दूषित होना संभव नहीं है, और उसके भ्रान्त न होनेकी आशा भी की जा सकती है।