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________________ चाथा अध्याय ] सामाजिक नीतिसिद्ध कर्म। २८३ लक्षण ऐसे ही देख पड़ते हैं । भिन्न भिन्न जातियों में होनेवाला युद्ध जब केवल धरती पर और सागरके भीतर ही न होकर आकाशमागमें भी होगा, तब वह ऐसा भयानक रूप धारण करेगा कि युद्धप्रेमी उमे बंद करनेके लिए लाचार होंगे। इसके सिवा एक ही जातिके बीच धनिकों और मजदूरों में जैसा घोरतर विरोध होता जा रहा है, उसे देखनेमे जान पड़ता है कि दोनों ही पक्षोंको आत्मरक्षाके लिए स्वार्थकी दुराकांक्षा कुछ कुछ छोड़नी ही पड़ेगी। इसी कारणसे आशा की जाती है कि कमसे कम अपने अपने स्वार्थकी रक्षाके लिए लोग कुछ कुछ परार्थपर होंगे और मनुष्यों में जो परस्पर वैरभाव देख पड़ता है वह दूर होकर मैत्रीका भाव स्थापित होगा। ३ तीसरी साधारण समाजनीति यह है कि जहाँतक किसीका अनिष्ट न हो, वहींतक सभी अपनी अपनी इच्छाके अनुसार चल सकते हैं। जहां एककी इच्छाके साथ दूसरेकी इच्छाकी टक्कर हो, वहाँ दोनोंहीको रुक जाना चाहिए, और विचार करके जिम्पकी इच्छा न्यायसंगत निश्चित हो उमीको उसकी इच्छाके अनुसार चलने देना उचित है। आपसमें प्रतिद्वन्द्विता रखनेवाले आप ही अगर वह विचार कर सकें तो वह सबसे अच्छी और सुखकी बात है। अगर वे ऐसा न कर सकें तो दोनोंको रुक जाना चाहिए, अथवा किसी मध्यस्थ आदमीकी सहायताले विरोधकी मीमांसा करा लेनी चाहिए। ४ अपने बाक्य या कार्यके द्वारा दुसरेके मन में जो संगत आशा उत्पक्ष की जाय, उसे पूरा कर देना सभीका कर्तव्य है । यद्यपि आईनके अनुसार सभीजगह ऐसी आशा पूरी करनेके लिए लोग वाध्य नहीं किये जा सकते, किन्तु सामाजिक नीतिके अनुसार सभी जगह उसे पूर्ण करना सबका कर्तव्य है । आईन और सामाजिक नीतिके ऐसे प्रभेदका कारण यह है कि आईन जो है वह केवल उसी जगह हस्तक्षेप करता है जहाँ पर वह अत्यन्त प्रयोजनीय होता है, और समाज नीति जो है वह अत्यन्त प्रयोजनीय जगहके अलावा भी हस्तक्षेप करना चाहती है । आईन केवल अनिष्टनिवारणके लिए है, समाजनीति उसके अतिरिक्त इष्टसाधनके निमित्त है । आईन जो है वह लोगोंको बुराईसे रोक कर ही रह जाता है, किन्तु समाजनीति जो है वह लोगोंको बुरे कामोंसे रोककर ही चुप नहीं रहती, लोगोंको भला बननेके
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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