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अनुसार चिकित्सक भी बुलाया जाता है। इसके सिवा वैद्यकी, हकीमकी डाक्टरकी, एलोपैथी, होमियोपैथी आदि अनेक प्रकारकी चिकित्साएँ हैं। किस प्रकारकी चिकित्सा कराई जाय, यह भी अतिकठिन समस्या है। जो रोग उपस्थित हो, उसके आसपासके दस आदमी कैसी चिकित्सा कराते हैं और उस चिकित्साका फल कैसा होता है, यह सब देख सुनकर कार्य करना ही अच्छी युक्ति है। कारण, जिस तरहकी चिकित्साले एक आदमीको लाभ हुआ है, उससे निकटस्थ और एक आदमीके वैसे ही रोगका शान्त होना बहुत कुछ संभव है।
गृहस्थके लिए यह भी एक अतिगुरुतर प्रश्न है कि पीड़ा बढ़ने पर, और जो चिकित्सा चल रही है उससे कोई फल न होने पर, चिकित्सकको या चिकित्सा-प्रणालीको बदल देना कर्तव्य है कि नहीं। चिकित्सक लोग अक्सर परिवर्तनके विरोधी ही होते हैं। किन्तु गृहस्थ उतना स्थिर होकर रह नहीं सकते । विज्ञ चिकित्सक महाशयोंको गृहस्थकी वह आस्थिरता क्षमा करनी चाहिए। चिकित्सकके बदलनेमें बहुतसी असुविधाएँ हैं। जो पहलहीसे देख रहा है वह जितना रोगकी गतिको जान चुका है, बादको जो देखेगा, उसका उतना रोगकी गतिको जानना कभी संभव नहीं। अथच दो चिकित्सकोंको दिखाना भी सबके लिए साध्य नहीं होता। जिसके क्षमता है, उसका कर्तव्य है कि दूसरे चिकित्सकको अगर बुलावे तो पहलेसे जो चिकित्सक देख रहा है उसे भी साथ रक्खे। चिकित्साके सम्बन्धमें और एक बात है। जहाँ दो तीन चिकित्सक एक साथ दवा करते हैं, वहाँ वे आपसमें सलाह करते समय जो कुछ बातचीत करते हैं वह रोगीके अभिभावकोंको नहीं जानने देते । रोगी उन सब बातोंको सुनकर अधिक चिन्तित हो सकता है और उसकी वह दुश्चिन्ता रोगकी शान्ति में बाधा भी डाल सकती है। किन्तु अभिभावकके बारेमें यह आशंका नहीं है। इस लिए चिकित्सक महाशयोंका. कर्तव्य है कि वे सब बातें स्पष्टरूपसे अभिभावकोंको बता दें। अगर उनमें मतभेद हो, तो वह बात भी रोगीके अभिभावकको बता देना उचित है। ऐसा होनेसे अभिभावक भी अपने कर्तव्यको उपयुक्त रूपसे ठीक कर सकेंगे। वकील बैरिस्टर लोगोंसे जो कोई मवक्किल सलाह लेने जाता है उससे वे लोग अपना मतामत नहीं छिपा रखते । फिर समझमें नहीं आता कि चिकि