________________
२५८
ज्ञान और कर्म ।
[ द्वितीय भाग
सकते, और उनके भीतर रुईमें मूत्र आदि प्रवेश करने पर वह वैसा ही रह जाता है, साफ नहीं होता । सुना है, नवाब लोग नित्य नई तोशकका इस्तेमाल करते थे । जो लोग बसे धनाढ्य हैं और बच्चेकी पगड़ी पर नित्य नई तोशक डाल सकते हैं, वे ही बच्चेको तोशक पर सुलानेकी इच्छा करें। लेकिन मेरी समझमें वैसी इच्छा करना और इस तरह वृथा धन खर्च करना उन्हें भी उचित नहीं है। धन पास रहने पर भी उसे वृथा नष्ट करना निषिद्ध है । धनके अनेक प्रयोजनीय व्यवहार हैं, उनमें उसे खर्च करना चाहिए । इसके सिवा बच्चे के लिए बिल्कुल ही कोमल शय्या उतनी उपयोगी नहीं होती, कुछ कठिन शय्या ही उपकार करती है । कारण, उसमें सोनेसे बच्चेकी रोढ़ (मेरुदण्ड ) सीधी होती है, और शरीर सुगटित होता है ।
दास-दासियोंपर भरोसा नहीं रखना चाहिए ।
1
सन्तान - पालन और घरके कामोंकी देख-रेख इन दोनों कामोंको अन्यकी सहायता के बिना अच्छीतरह संपन्न करना अनेक जगह पिता-माताके लिए असंभव होता है और इसीलिए दास-दासी आदिका प्रयोजन होता है । किन्तु सुनियमके साथ चलने से कई दास-दासियोंका प्रयोजन नहीं होता, थोड़े में ही काम चलता है । किन्तु बच्चों के पालनका भार दास-दासीके ऊपर छोड़कर निश्चिन्त होना पिता और माताका कर्तव्य नहीं है । एक तो, दासदासी जो हैं वे धनके लिए कुछ दिनोंके वास्ते काम करते हैं और पितामाता जो हैं वे स्नेहवश होकर बच्चे के परिणामको सोच समझकर काम करते हैं । अतएव दास-दासियों के कर्तव्यपरायण होने पर भी उनका यत्न जनक- जननीयनकी अपेक्षा अवश्य ही कम होगा। दास-दासीको शिशुपालनमें यत्न न करते देखकर जब पिता-माता नाराज होते हैं, तब उन्हें यह याद रखना चाहिए कि वे अगर अपत्यस्नेहके रहने पर भी दूसरोंके ऊपर शिशुपालनका भार छोड़कर खुद उसमें शिथिल प्रयत्न हो सकते हैं, तो केवल तनख्वाह के लिए जो लोग काम करते हैं उनका यत्न शिथिल होना कुछ विचित्र नहीं । दूसरे, जिल श्रेणीके लोगोंमेंसे दास-दासी पाये जाते हैं उनकी बुद्धिविवेचना प्रायः वेली अधिक नहीं होती । अतएव शिशुपालन में पिता-माताकी देख-रेख होनेकी अत्यन्त आवश्यकता है। तीसरे, माता-पिता स्वयं सर्वदा सन्तानका पालन या सन्तानपा उनकी देख-रेख करते हैं, तो सन्तान के हृदय में भी उनके