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________________ तीसरा अध्याय ] पारिवारिक नीतिसिद्ध कर्म। २४३ आत्मानमात्मना यास्तु रक्षेयुस्ताः सुरक्षिताः ॥ (मनु अ० १, श्लो० १२) अर्थात् मर्द जिन औरतोंको घरमें बंद करके रखते हैं उन्हें अरक्षित ही समझना चाहिए । जो समझदार स्त्रियाँ आप अपनी रक्षा करती हैं वे ही वास्तवमें सुरक्षित हैं। धर्मकार्य (जैसे तीर्थयात्रा, देवदर्शन आदि) और गृहकार्य ( विवाहादि उत्सव और अतिथि आदिकी सेवा ) में हिन्दूके घरकी स्त्रियां सबके सामने निकल सकती हैं और निकलती हैं, उसके लिए कोई निषेध नहीं है । हाँ. आमोद-प्रमोदके लिए वे सबके सामने नहीं निकलतीं, और इस प्रथाको बिल्कुल अन्याय भी नहीं कहा जा सकता ! आमोद-प्रमोद आत्मीय स्वजनोंके सामने ही भला लगता है। जिस-तिसके आगे और जहाँ-तहाँ अमोद-प्रमोद करना, स्त्रीके लिए ही क्यों, पुरुपके लिए भी निषिद्ध है। उससे चित्तकी धीरता नष्ट होती है, चंचलता आती है, और लब प्रवृत्तियाँ असंयत हो उठती हैं। विवाहसम्बन्धका तोड़ना। अब विवाहसम्बन्धका विच्छेद किस अवस्थामें हो सकता है, या वह कभी होना चाहिए या नहीं, इस प्रश्नकी कुछ आलोचना की जायगी। सोचकर देखे बिना पहले जान पड़ सकता है कि दोनों पक्षांकी सम्मतिके अनुसार इस सम्बन्धके विच्छिन्न होनेमें कोई बाधा नहीं है। किन्तु कुछ सोचकर देखनेसे समझ पड़ेगा कि इस तरहके गुरुतर सम्बन्धका विच्छेद उस तरहसे होना किसी तरह न्यायसंगत नहीं हो सकता। अगर इस तरह विवाहसम्बन्ध विच्छिन्न होगा तो दुर्निवार इन्द्रियोंकी संयत तृप्ति, सन्तान उत्पन्न करना और पालना, दाम्पत्य-प्रेम और अपत्य-स्नेहसे क्रमशः स्वार्थपरताका त्याग और परार्थपरताका अभ्यास आदि जो विवाह-संस्कारके उद्देश्य हैं वे पूरे न हो सकेंगे-उन पर पानी फिर जायगा । कारण, जब चाहो तब विवाहसम्बन्धका विच्छेद हो सकनेपर प्रकारान्तरसे यथेच्छ इन्द्रियतप्ति प्रश्रय पावेगी; जनक-जननीका विवाहबन्धन विच्छिन्न होनेपर बच्चे जो हैं वे पालनके समय पिताके, या माताके, और कभी दोनों हीके आदर-यत्नसे वञ्चित होंगे; दांपत्यप्रेम और अपत्यस्नेह पशु-पक्षियोंकी अपेक्षा मनुष्योंमें
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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