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छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय । हो सके, तो हिंसक और उसके समान प्रकृतिवाले व्यक्ति आप ही दुष्कर्मसे निवृत्त होंगे; दण्डका भय दिखानेकी जरूरत फिर नहीं रहेगी। अतएव दण्डनीय व्यक्तिके संशोधनमें एक साथ उसका हित करना और समाजके अनिष्टका निराकारण, दोनों ही फल पाये जाते हैं। इसी कारण कहा जाता है कि अगर किसी तरहकी शिक्षा या चिकित्साके द्वारा दण्डनीय व्यक्तिका संशोधन संभव हो, तो वह शिक्षा या चिकित्सा कैसी है, इसके निर्णयके लिए विशेष यत्न करना शरीरविज्ञान और मनोविज्ञानके ज्ञाता पण्डितोंका परम कर्तव्य है (.)।