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छठा अध्याय ]
ज्ञान-लाभके उपाय |
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(२) भाषा शिक्षा सम्बन्ध में कौन प्रणाली प्रशस्त है, अर्थात् बातचीतके साथ साथ काव्य आदिकी पुस्तकें और व्याकरण पढ़ना भाषा सीखनेकी श्रेष्ठ और सहज प्रणाली है, अथवा बातचीत के ही द्वारा सहजमें भाषा सीखी जा सकती है, इस विषयका अनुशीलन भी शिक्षा-तत्त्वज्ञ पण्डितोंके द्वारा निरपेक्ष भावसे होनेका अत्यन्त प्रयोजन है । क्योंकि उस अनुशीलनका फल बहुदूरव्यापी है । ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है, जिन्हें अनेक कारणोंसे मातृभाषाके सिवा अन्य दो-एक भाषाएँ भी सीखनी पड़ती हैं, और उसमें उनका बहुत समय खर्च होता है, श्रम भी बहुत करना पड़ता है । यदि इतने लोगोंका वह समयका व्यय और श्रम शिक्षाकी अच्छी और सहज प्रणाली आविष्कारसे कुछ भी बचाया जा सके तो कुछ कम लाभ न हो । इस बारे में जैसा मतभेद है, उसका उल्लेख पहले ही किया जा चुका है। युक्ति, तर्क और थोड़ी बहुत परीक्षाके ऊपर निर्भर करके वे सत्र मत प्रकट किये जाते हैं, और यह भी नहीं कहा जा सकता कि वे युक्ति, तर्क, परीक्षा आदि हमारे आत्माभिमान दोषसे दूषित नहीं हैं। थोड़ा देख-सुनकर पहले जिस आनुमानिक सिद्धान्त पर हम पहुँचते हैं, वह तत्त्वानुसन्धानके लिए पथप्रदर्शक हो सकता है, और स्थिर सिद्धान्त मानकर उसे ग्रहण करनेसे वह तत्त्वानुसन्धानकी राहको बन्द कर देता है । किन्तु आत्माभिमानवश अपने अनुमानके ऊपर हमारे हृदय में ऐसा अनुराग उत्पन्न होता है कि उसकी यथार्थताके ऊपर सन्देह नहीं होता, और परीक्षाका फल उसके विपरीत होनेपर उस परीक्षाको दूषित कहकर उड़ा देनेकी इच्छा होती है । इसी लिए भाषाशिक्षा प्रणालीकी उत्कृष्टताका निर्णय करनेके लिए जो अनुशीलन हो वह निरपेक्ष भावसे होना चाहिए, यह बात ऊपर कही गई है। यह न होगा तो जिन्होंने पहले ही यह राय जाहिर कर दी है कि जिस प्रणालीसे मातृभाषा सीखी जाती है वही प्रणाली सभी भाषाएँ सीखने में काम आ सकती है, उनका वह मत बदलना अत्यन्त कठिन है ।
( ३ ) गणितशास्त्रके, और अन्य शास्त्रोंके भी, सब तत्त्वोंको जटिल तर्क और प्रमाणके द्वारा सिद्ध न करके, पहले दिखलाये जा चुके मिश्रण सम्बन्धी दृष्टान्तकी तरह सरल और सब आदमियोंकी समझमें आनेवाले बम. पके स जिससे उसका निर्णय हो सके उस विषयका अनुशीलन बहुत ही उपकारक .