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छठा अध्याय ]
ज्ञान-लाभके उपाय।
कार करती है। किन्तु जिस परीक्षाका उद्देश्य यह नहीं है, बल्कि प्रश्नोंकी विचित्रताके द्वारा विद्यार्थियोंकी अज्ञता दिखाना और उनको अप्रतिम करना है, वह परीक्षा शिक्षाका उपकार न करके अपकार ही करती है। कारण उस तरहकी परीक्षाके लिए तैयार होनेमें विद्यार्थी लोग ज्ञानके उपार्जन और मानसिक उत्कर्ष-साधन पर लक्ष्य नहीं रखते; इसी चिन्तामें डूबे रहते हैं कि किस उपायसे विचित्र विचित्र प्रश्नोंका उत्तर दे सकेंगे।
परीक्षाके सम्बन्धमें निम्नलिखित बातें याद रखना उचित है
१-परीक्षा जो है वह शिक्षाका फल निरूपण करनेके लिए हो, और शिक्षाकी अनुगामिनी हो । शिक्षा जो है उसका प्रयोजन परीक्षाका फललाभ नहीं है और वह परीक्षाकी अनुगामिनी न होनी चाहिए।
२-मासिक, वार्षिक या अन्यप्रकारकी सामयिक परीक्षाके सिवा नित्य परीक्षा, अर्थात् शिक्षा-लब्ध विषयकी नित्य आलोचना, आवश्यक है।
३-अति दुरूह अथवा संख्यामें अत्यन्त अधिक प्रश्न पूछना अनुचित है। किन्तु प्रतिभाका परिचय प्राप्त करनेके लिए बीच बीचमें दो-एक कठिन प्रश्न भी रहने चाहिए।
अनुशीलन । पहले कहा जा चुका है कि ज्ञान-लाभके लिए अपना यत्न और अन्यकी सहायता, दोनोंका प्रयोजन है, और अन्यकी सहायताको शिक्षा कहते हैं, तथा अपने यत्नको अनुशीलन कहेंगे। शिक्षाके सम्बन्धमें कुछ आलोचना की जा चुकी है। अब अनुशीलनके सम्बन्धमें दो-एक बातें कह कर यह अध्याय समाप्त किया जायगा। .
ज्ञानके विषयोंके भेदसे अनुशीलनकी प्रणाली भी कई तरहकी है। बहिजगत्के विषयोंके सम्बन्धमें पर्यवेक्षण और परीक्षाके द्वारा अनुशीलनका काम चलता है । अन्तर्जगत्के विषयोंके सम्बन्धमें अन्तर्दृष्टिके द्वारा अपने आत्मासे जिज्ञासा और अन्यकी आत्माके बाहरी कामोंका पर्यवेक्षण ही अनुशीलनका उपाय है । बहिजगत्से सम्बन्ध रखनेवाले अनुशीलनमें अनेक जगह पर्यवेक्षण और परीक्षा दोनों ही बातें साध्य होती हैं। जैसे जीवदेहके तत्त्वानुशीलनमें देहके कार्योंका पर्यवेक्षण किया जा सकता है, और जीवकी इच्छानुसार अवस्था बदलकर उस बदली हुई अवस्थाके फलकी परीक्षा भी की जा