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________________ १५२ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग जो दोप-गुण होते हैं उनका फल साक्षात् सम्बन्धमें सर्वसाधारणको ही भोगना पड़ता है। एक साधारण उपमा देकर यह बात स्पष्ट की जाती है। वैज्ञानिक ग्रन्थकी रचना करनेवालेकी तुलना यन्त्र आदि बेचनेवालेके साथ होनी चाहिए, और साहित्यिक ग्रन्थकी रचना करनेवालेकी तुलना खाद्यपदार्थ बेचनेवालेके साथ करनी चाहिए। यन्त्रविक्रेताकी चीजको व्यवसायी खरीदार दोष गुणोंका विचार करके खरीदता है, और ठगे जाने पर भी प्रायः आर्थिक हानिके सिवा उसकी और किसी तरहकी क्षति नहीं होती। किन्तु खाद्यविक्रेताकी चीजको रोजगार करनेवाला और न रोजगार करनेवाला, बुद्धिमान और निर्बोध, सभी खरीदते हैं। उनमेंसे अनेक लोग ऐसे होते हैं जो उसके दोष-गुणका विचार करनेकी सामर्थ्य अथवा योग्यता नहीं रखते, और ठगे जाने पर उन्हें केवल आर्थिक क्षति ही नहीं, बल्कि शारीरिक अनिष्ट भी सहना पड़ता है। और विज्ञान-विषयक ग्रन्थको एक आदमी समझकर पढ़ता है, तो साहित्यविषयक ग्रन्थको सौ आदमी बिना सोचे-समझे पढ़ते हैं, और उस ग्रन्थपाठके द्वारा उनकी रुचि, प्रवृत्ति और कार्य परिचालित होते हैं। अतएव वैज्ञानिक ग्रन्थ रचनेवालेकी अपेक्षा साहित्यसम्बन्धी ग्रन्थ रचनेवालेकी जिम्मेदारी सौगुनी अधिक गुरुतर है। अच्छे साहित्यिक ग्रन्थ सुरुचि और अच्छी प्रवृत्तिको उत्तजना देकर जितना सर्वसाधारणका हितकर सकते हैं, बुरे साहित्यिक ग्रन्थ कुरुचि और कुप्रवृत्तिको उत्साहित करके, उतना ही नहीं बल्कि उससे कहीं अधिक सर्वसाधारणका अनिष्ट कर सकते हैं। इसका कारण यही है कि दुर्भाग्यवश उन्नतिके मार्गकी अपेक्षा अवनतिके मार्गमें मनुष्योंकी गति अति सहज होती है। इन सब बातोंको सोचनेसे जान पड़ता है, पृथ्वी परके अनेक साहित्यिक ग्रन्थोंकी रचना अगर न होती तो कोई नुकसान न था, बल्कि लाभ ही होता। ___साहित्यविषयक ग्रन्थ अगर सुरुचिसंपन्न, सुप्रवृत्तिके उत्तेजक और सत् उपदेश देनेवाले नहीं हैं तो उनके लिखे जानेका कोई प्रयोजन नहीं है । प्रायः सभी सभ्यजातियोंकी भाषाओं में ही इतने उत्कृष्ट काव्यग्रन्थ हैं कि लोग उन्हीं सबको जिंदगी भरमें पढ़ नहीं पाते। ऐसी अवस्थामें नवीन निकृष्ट ग्रंथोंके रचे जानेकी जरूरत क्या है ? इस प्रश्नके उत्तरमें साहित्यसे अनुराग रखनेवाले लोग अवश्य ही कह सकते हैं कि " समाज स्थितिशील नहीं है, सर्वदा गतिशील है; सामा.
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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