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________________ छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय । भाषा लिखनेकी योग्यता नहीं प्राप्त होती, उसे वृथा आडम्बरसे शून्य सरल भाषा ही लिखनी चाहिए। पहले ही कहा जा चुका है कि रचना दो तरहकी होती है, वैज्ञानिक और साहित्यिक । थोड़ा यत्न करनेसे वैज्ञानिक प्रणालीकी रचना करना सभीके लिए साध्य है। किन्तु विशेष प्रतिभाशाली व्यक्तिके सिवा अन्यके लिए साहि-- त्यिक प्रणालीसे रचना करनेकी चेष्टा वृथा है। किन्तु अनेक लोग अभिमानके वश होकर वही वृथा चेष्टा करते देखे जाते हैं। रचनाप्रणालीके सम्बन्धमें और भी दो-एक बाते हैं। जान पड़ता है, अनेक लोग अपनी बुद्धिमत्ता या पाण्डित्य दिखानेके लिए, अथवा पाठकोंकी बुद्धिमत्ता जाँचनेके लिए, वक्तव्य विषयको स्पष्ट करके नहीं कहते; वे अपने वक्तव्यको इशारेसे प्रकट करना पसंद करते हैं । वे इशारे अगर सार्थक और सरल होते हैं तो क्षति नहीं होती, बल्कि उससे पाठकोंको आनन्द मिलता है। किन्तु वे यदि निरर्थक या कष्टकल्पनासे दूषित होते हैं, तो उनसे रचनाकी स्पष्टता नष्ट हो जाती है। फिर कभी कभी देखा जाता है कि रचनामें उज्ज्वल पाण्डित्यकी छटा दिखानेका प्रयास करके, प्रयोजन हो या न हो, संलग्न हो या असंलग्न हो, लोग अपरिचित और सर्वसाधारणके न जाने हुए उदाहरणोंके द्वारा सरल बातको भी जटिल बना देते हैं। ३ पुस्तकका विषय । जैसे ज्ञानकी सीमाका अन्त नहीं है, वैसे ही विषयोंकी भी संख्या नहीं है। परन्तु उपस्थित आलोचनाके लिए पुस्तकोंको दो भागोंमें बाँट सकते हैं। पुस्तकें विज्ञानविषयक और साहित्य-विषयक हैं। विज्ञान-विषयक पुस्तकोंके दोप-गुणके सम्बन्धमें यहाँपर अधिक कुछ कहनेका प्रयोजन नहीं है। इस श्रेणीकी पुस्तकें सर्वसाधारण पाठकोंके लिए नहीं, खास खास पाठकों के लिए होती हैं। उनके दोष-गुणोंका विचार करनेमें उनके पाठक ही समर्थ हैं । और, उन दोषगुणोंका फलाफल, कमसे कम साक्षात् सम्बन्धमें, सर्वसाधारणको नहीं भोगना पड़ता किन्तु साहित्यिक पुस्तकें वैसी नहीं होतीं। वे सर्वसाधारण पाठकों के लिए हैं । अनेक स्थलों में पाठकगण उनके दोष-गुणोंका विचार करने में असमर्थ होते हैं। मगर इस श्रेणीके ग्रन्थोंमें
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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