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ज्ञान और कर्म।
प्रथम भाग
फिलिपकी दी हुई दवाको रत्ती भर संदेह किये बिना एक साँसमें पी लिया। सिकंदरने इसके द्वारा अपने मनकी असीम दृढ़ता और साहसका परिचय दिया।" देहाती शिक्षक जब यह कहानी कहकर उपदेश दे चुके, तब रूसोने उनके उपदेशकी सफलताके संबंधमें सन्देह प्रकट किया। शिक्षकने रूसोसे परीक्षा करनेके लिए अनुरोध किया । रूसोने बालकसे पूछा कि उस कहानीमें किस तरह सिकंदरकी दृढ़ता और साहसका परिचय पाया गया? बालकने जवाब दिया-कटोरा भर दवाको बिना हिचकिचाहटके पी लेनेसे । तब शिक्षक महाशय समझ गये कि उन्होंने अच्छी तरह समझाया, लेकिन बालककी बुद्धिकी दौड़ जहाँतक थी वहींतक वह समझा।
(५) शिक्षाप्रणालीके सम्बन्धमें पाँचवीं बात यह है कि जो सिखाया जाय वह अच्छी तरह सिखाया जाना चाहिए।
जो सिखाया जाय वह अगर अच्छीतरह नहीं सिखाया जायगा तो उससे कोई फल नहीं होगा। जो विषय सिखाया जाय उसे शिक्षार्थीकी शक्तिके अनुसार संपूर्णरूपसे समझा देना शिक्षकका आवश्यक कर्तव्य है । अगर किसी कारणसे कोई विषय समझानेको बाकी रह जाय, तो यह बात शिक्षार्थीसे कह देना उचित है । कोई विषय अच्छी तरह नहीं सिखानेसे कैसा दोष आपड़ता है, सो नीचेके दृष्टान्तों से स्पष्ट समझमें आजायगा। ___ एकबार किसी मेरे आत्मीय पुरुषने अपने दस या ग्यारह वर्षके पुत्रकी परीक्षा लेनेके लिए कि वह कैसा पढता-लिखता है, मुझसे कहा। उस बालकको उस समय एक भूगोल पढ़ते देखकर मैंने उससे पूछा-सूर्य पृथ्वीसे कितनी दूर है ? उसने उसी दम उत्तर दिया-नव करोड़ पचास लाख मील । इसके बाद मैंने पूछा-तुम इस समय पृथ्वीसे कितनी दूर हो? इस प्रश्नका उत्तर वह शीघ्र नहीं दे सका। वह बालक एकदम निर्बोध नहीं था। किन्तु दूर और निकट किसे कहते हैं, और पृथ्वी कहाँ है, ये सब बातें उसे अच्छी तरह सिखाई नहीं गई थीं।
और एक बार कई छात्रोंसे मैंने पूछा-"किसी संख्याका ४ से भाग दिया जासकता है या नहीं, यह देखते ही कैसे जाना जा सकता है ?" अनेक बालकोंन उत्तर दिया--" अगर उसके दहिनेओरकी पिछली दो संख्याओंका ४ से भाग किया जा सकता हो।" मगर यह उत्तर ठीक नहीं हुआ।