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छठा अध्याय ]
ज्ञान-लाभके उपाय ।
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१२५६ इस संख्याका ४ से भाग दिया जा सकता है, किन्तु पिछली दोनों संख्या (५ और ६) ऐसी हैं कि उनका ४ से भाग नहीं दिया जा सकता है। उत्तरमें " पिछली दो संख्याओं" की जगह “पिछले दो अंकोंसे जो संख्या हो उसका" यह कहना चाहिए था।
(६) शिक्षाप्रणालीके सम्बन्धमें छठी बात यह है कि सभी कार्योंको यथानियम और यथासमय कर डालनेका अभ्यास होना आवश्यक है।
पहले ही कहा जा चुका है कि मनुष्यका केवल ज्ञानी हो जाना ही यथेष्ट नहीं है, इस कार्यक्षेत्रमें काम करनेवाला होना भी आवश्यक है। कर्मठ होनेके लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि सब कामोंको यथानियम और यथासमय कर डालनेका अभ्यास हो । बहुत लोग समझते हैं, क्या कार्य हमें करना चाहिए और किस तरह वह कर्तव्य कार्य संपन्न होगा, इन दो बातोंका ज्ञान हो जाना ही यथेष्ट है। किन्तु यह बात ठीक नहीं । उक्त दोनों विषयोंका ज्ञान आवश्यक है, किन्तु यथेष्ट नहीं है। इस ज्ञानके साथ साथ कार्य करनेका अभ्यास होना अत्यन्त आवश्यक है। अभ्यास न रहनेसे साधारण काम भी सहजमें नहीं किया जा सकता। इस बारेमें पूर्वोक्त साधारण उदाहरण सबको याद रखना चाहिए । सरल रेखा किसे कहते हैं, यह हम जानते हैं, और किस तरह वह खींची जाती है, यह भी जानते हैं। लेकिन एक हाथ लंबी एक सीधी रेखाको, अगर खूब अभ्यास न हो, तो यन्त्रकी सहायताके बिना शायद कोई नहीं खींच सकता।
यथासमय यथानियम काम करनेका अभ्यास इस जीवनयात्राका महामूल्य संबल है । उसे प्राप्त करनेके लिए सभीको यत्न करना चाहिए । इस अभ्यासकी शिक्षा पहले कुछ कष्टकर होती है, और कुछ दिनोंतक शिक्षार्थी और शिक्षक दोनोंको सर्वदा सतर्क रहना होता है। किन्तु मंगलमयी प्रकृतिका ऐसा ही नियम है कि एक बार अभ्यास हो जाने पर फिर किसीको कुछ कहना नहीं पड़ता, आपहीसे शिक्षार्थी यथानियम अभ्यस्त कार्य करता है, उससे वह काम बिना किये रहा नहीं जाता।
(७) शिक्षाप्रणालीकी सातवीं बात यह है कि भ्रम हो जाने पर उसी घड़ी उसका संशोधन आवश्यक है।