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लगभग दो वर्ष हुए, सं० १९७५ के पौष में, ७४ वर्षकी अवस्थामें उनका स्वर्गवास हुआ । उनका स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहा । वृद्धावस्थामें भी उनकी शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ निस्तेज नहीं हुई थीं । यह उनके सादे और संयमी जीवनका ही फल था ।
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गुरुदास बाबू अपने बाद अपने कई योग्य पुत्रोंको छोड़ गये हैं जो उच्च शिक्षासे आभूषित हैं और बड़े बड़े ओहदों पर काम कर रहे हैं ।
इसी धुरन्धर विद्वान् और सच्चरित्र पुरुषके इस अपूर्व ग्रन्थको आज हम अपने पाठकोंकी भेट कर रहे हैं ।
पौष सुदी १४ सं० १९७७ वि०।
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निवेदकनाथूराम प्रेमी ।